बदीउज़्ज़माँ ख़ावर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
नाम | बदीउज़्ज़माँ ख़ावर |
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अंग्रेज़ी नाम | Badiuzzama Khawar |
रौशनी ही रौशनी है शहर में
मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है
महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का
खड़ा था कौन कहाँ कुछ पता चला ही नहीं
कब बयाबाँ राह में आया ये समझा ही नहीं
जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है
जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है
है बहुत मुश्किल निकलना शहर के बाज़ार में
भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम
आग ही काश लग गई होती