चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
मुझे मिलता नहीं है कारवाँ क्यूँ
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गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
तू भले मेरा ए'तिबार न कर
ऐसी होने लगी थकन उस को
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
हादसा होता रहा है मुझ में
जब कोई टीस दिल दुखाती है
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही
हवा के दोश पर लगता है उड़ने