हवा के दोश पर लगता है उड़ने
जो पत्ता टूट जाता है शजर से
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ऐसी होने लगी थकन उस को
खुला मकान है हर एक ज़िंदगी 'आज़र'
लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
पावँ से काँटा निकल जाए अगर
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
जब कोई टीस दिल दुखाती है
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त