मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है
मैं तन्हा आदमी की दोस्ती हूँ
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(736) Peoples Rate This
सैलाब-ए-ज़िंदगी के सहारे बढ़े चलो
क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें
हज़ार चाहा लगाएँ किसी से दिल लेकिन
तूफ़ान नई तरह उठा देखें तो
दश्त-ए-वफ़ा में ठोकरें खाने का शौक़ था
तबाह हो के भी इक अपनी आन बाक़ी है
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
हर एक हक़ीक़त का फ़साना होगा
कहते हैं ब-सद-नाज़ मिरा नाम न लो
चाहा बहुत कि इश्क़ की फिर इब्तिदा न हो
आईना-ए-महताब लिए आए हैं
दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है