ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया न करो
बे-वज्ह मोहब्बत भी जताया न करो
हम तुम से ख़फ़ा हो के कहाँ जाएँगे
तुम हम को किसी तरह मनाया न करो
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जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
आईना क्या किस को दिखाता गली गली हैरत बिकती थी
हर लहज़ा धड़कता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब
सड़कों पे तिरी फिरता था मारा मारा
माना कि हर इक तरह के हाएल ग़म हैं
कहते रहें ये लोग कि अच्छा न हुआ
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
इस दर्जा हुआ ख़ुश कि डरा दिल से बहुत मैं
मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है
हर बात यहाँ राज़ बनी जाती है
ऐ रूह-ए-अवध तेरी मोहब्बत के निसार
दीवानगी की राह में गुम-सुम हुआ न था!