मिर्ज़ा रज़ा बर्क़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
नाममिर्ज़ा रज़ा बर्क़
अंग्रेज़ी नामBarq Mirza Raza
जन्म की तारीख1790
मौत की तिथि1857
जन्म स्थानLucknow

उर्यां हरारत-ए-तप-ए-फ़ुर्क़त से मैं रहा

पूछा अगर किसी ने मिरा आ के हाल-ए-दिल

नहीं बुतों के तसव्वुर से कोई दिल ख़ाली

न सिकंदर है न दारा है न क़ैसर है न जम

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता

ख़ुद-फ़रोशी को जो तू निकले ब-शक्ल-ए-यूसुफ़

जोश-ए-वहशत यही कहता है निहायत कम है

इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया

हम तो अपनों से भी बेगाना हुए उल्फ़त में

हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

देख कर तूल-ए-शब-ए-हिज्र दुआ करता हूँ

दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो

छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में

बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं

बाद-ए-फ़ना भी है मरज़-ए-इश्क़ का असर

अज़ाँ दी काबे में नाक़ूस दैर में फूँका

अज़ाँ दी काबा में नाक़ूस दैर में फूँका

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार

ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का

वो शाह-ए-हुस्न जो बे-मिस्ल है हसीनों में

वहशत में भी रुख़ जानिब-ए-सहरा न करेंगे

शम्अ भी इस सफ़ा से जलती है

रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए

क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है

पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया

न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले

न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा

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