बशीर मुंज़िर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बशीर मुंज़िर

बशीर मुंज़िर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बशीर मुंज़िर
नामबशीर मुंज़िर
अंग्रेज़ी नामBasheer Munzir

ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम

सोए हुए जज़्बों को जगा कर फिर वो शाम न आई

सर पे इक साएबाँ तो रहने दे

मिस्ल-ए-नमरूद हर इक शख़्स ख़ुदाई माँगे

क्या बिछड़ कर रह गया जाने भरी बरसात में

हम बयाबानों में घूमे शहर की सड़कों पे टहले

होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं

हर रोज़ ही दिन भर के झमेलों से निमट के

हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल

दम-ब-ख़ुद है चाँदनी चुप-चाप हैं अश्जार भी

अच्छे कभी बुरे हैं हालात आदमी के

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