बासिर सुल्तान काज़मी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बासिर सुल्तान काज़मी

बासिर सुल्तान काज़मी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बासिर सुल्तान काज़मी
नामबासिर सुल्तान काज़मी
अंग्रेज़ी नामBasir Sultan Kazmi
जन्म की तारीख1953
जन्म स्थानLahore

तू जब सामने होता है

तेरे दिए हुए दुख

रुक गया हाथ तिरा क्यूँ 'बासिर'

कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैं

ख़त्म हुईं सारी बातें

कैसे याद रही तुझ को

जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी

दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो

चमकी थी एक बर्क़ सी फूलों के आस-पास

'बासिर' तुम्हें यहाँ का अभी तजरबा नहीं

बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई

अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए

अब दिल को समझाए कौन

तुझ को देख रहा हूँ मैं

था जो कभी इक शौक़-ए-फ़ुज़ूल

क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह

कितना काम करेंगे

ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात

कर लिया दिन में काम आठ से पाँच

जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है

हम जैसे तेग़-ए-ज़ुल्म से डर भी गए तो क्या

होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते

हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट

हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं

दूर साया सा है क्या फूलों में

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो

बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़

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