जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं
जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं
आसमाँ पर दिमाग़ रखते हैं
साक़ी भर भर उन्हीं को दे है शराब
जो कि लबरेज़ अयाग़ रखते हैं
तेरे दाग़ों की दौलत ऐ गुल-रू
हम भी सीने में बाग़ रखते हैं
हाजत-ए-शम्अ क्या है तुर्बत पर
हम कि दिल सा चराग़ रखते हैं
आप को हम ने खो दिया है 'बयाँ'
आह किस का सुराग़ रखते हैं
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