बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
मेरे साक़ी मुझे मस्त-ए-मय-ए-इरफ़ाँ करना
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ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक
हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे
पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो
क़स्र-ए-जानाँ तक रसाई हो किसी तदबीर से
जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से
जुस्तुजू करते ही करते खो गया
बेदम ये मोहब्बत है या कोई मुसीबत है
कभी यहाँ लिए हुए कभी वहाँ लिए हुए
मुझ से छुप कर मिरे अरमानों को बर्बाद न कर
वो क़ुलक़ुल-ए-मीना में चर्चे मिरी तौबा के
तुम जो चाहो तो मिरे दर्द का दरमाँ हो जाए
न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़