दहशत-ज़दा ज़मीं पर वहशत भरे मकाँ ये
इस शहर-ए-बे-अमाँ का आख़िर कोई ख़ुदा है
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(723) Peoples Rate This
यूँ चुप रहा करे से तो हो जाए है जुनूँ
कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है
अपनी तो कोई बात बनाए नहीं बनी
तेरी तो 'बिल्क़ीस' निराली ही बातें हैं
जिन में खो कर हम ख़ुद को भी भूल गए हैं
नज़र आता है वो जैसा नहीं है
देता था जो साया वो शजर काट रहा है
ख़ुद पे ये ज़ुल्म गवारा नहीं होगा हम से
जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो
नहीं है ख़्वाब दीवाने का हस्ती
है यूँ कि कुछ तो बग़ावत-सिरिश्त हम भी हैं
कब इक मक़ाम पे रुकती है सर-फिरी है हवा