वाइज़ बड़ा मज़ा हो अगर यूँ अज़ाब हो
दोज़ख़ में पाँव हाथ में जाम-ए-शराब हो
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ये सैर है कि दुपट्टा उड़ा रही है हवा
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
तुम अगर अपनी गूँ के हो माशूक़
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती
हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल
हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में