ये सैर है कि दुपट्टा उड़ा रही है हवा
छुपाते हैं जो वो सीना कमर नहीं छुपती
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क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देते
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो
हो सके क्या अपनी वहशत का इलाज
हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए
रह गए लाखों कलेजा थाम कर
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
देखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ 'दाग़' जा चुके
आरज़ू है वफ़ा करे कोई