कोई दिल-लगी दिल लगाना नहीं है
क़यामत है ये दिल का आना नहीं है
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सब कुछ है और कुछ भी नहीं दहर का वजूद
क़िस्मत बुरे किसी के न इस तरह लाए दिन
पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में
इश्क़ ने जिस दिल पे क़ब्ज़ा कर लिया
ज़िंदगी का किस लिए मातम रहे
दैर ओ काबा में भटकते फिर रहे हैं रात दिन
तुम से अब क्या कहें वो चीज़ है दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़
हुस्न-ए-अज़ल का जल्वा हमारी नज़र में है
या इलाही मुझ को ये क्या हो गया
ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं
लुत्फ़ हो हश्र में कुछ बात बनाए न बने
फ़िदा अल्लाह की ख़िल्क़त पे जिस का जिस्म ओ जाँ होगा