दिलावर अली आज़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का दिलावर अली आज़र

दिलावर अली आज़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का दिलावर अली आज़र
नामदिलावर अली आज़र
अंग्रेज़ी नामDilawar Ali Aazar
जन्म की तारीख1984
जन्म स्थानPakistan

वही सितारा-नुमा इक चराग़ है 'आज़र'

उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना

उस से कुछ ख़ास तअल्लुक़ भी नहीं है अपना

तुम ख़ुद ही दास्तान बदलते हो दफ़अतन

सुख़न-सराई कोई सहल काम थोड़ी है

सभी के हाथ में पत्थर थे 'आज़र'

मैं जब मैदान ख़ाली कर के आया

एक लम्हे के लिए तन्हा नहीं होने दिया

इक दिन जो यूँही पर्दा-ए-अफ़्लाक उठाया

चाँद तारे तो मिरे बस में नहीं हैं 'आज़र'

बदन को छोड़ ही जाना है रूह ने 'आज़र'

अब मुझ को एहतिमाम से कीजे सुपुर्द-ए-ख़ाक

ज़मीन अपने ही मेहवर से हट रही होगी

यूँ दीदा-ए-ख़ूँ-बार के मंज़र से उठा मैं

वो बहते दरिया की बे-करानी से डर रहा था

सात दरियाओं का पानी है मिरे कूज़े में

नींद में खुलते हुए ख़्वाब की उर्यानी पर

मुमकिन है कि मिलते कोई दम दोनों किनारे

मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे

मख़्फ़ी हैं अभी दिरहम-ओ-दीनार हमारे

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

लम्हा लम्हा वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ की सैर की

कुछ भी नहीं है ख़ाक के आज़ार से परे

ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

खींच कर अक्स फ़साने से अलग हो जाओ

कब तक फिरूंगा हाथ में कासा उठा के मैं

हवस से जिस्म को दो-चार करने वाली हवा

हवा ने इस्म कुछ ऐसा पढ़ा था

दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई

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