अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(9691) Peoples Rate This
वक़्त बर्बाद करने वालों को
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
वक़ार-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-कर्बला की क़सम
इस से पहले कि लोग पहचानें
ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे
बहुत आसान है दो घूँट पी लेना तो ऐ 'राही'
ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है
इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में
वक़्त को बस गुज़ार लेना ही