नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग
नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग
क्या अजब लोग हैं ज़िंदान बनाते हुए लोग
तेरा हर नक़्श मिटाती हुई यादें तेरी
और फिर मुझ को तिरी याद दिलाते हुए लोग
क्या ख़बर किस को तिरे हिज्र ने बख़्शी है नजात
जाने वो कौन थे अश्कों में नहाते हुए लोग
अब तो हर-गाम पे हर मोड़ पे मिल जाते हैं
देख कर मुझ को तिरा नाम बुलाते हुए लोग
धूप में साया मिले भी तो कहाँ से 'सादिक़'
जल गए फूस के छप्पर को बनाते हुए लोग
(3040) Peoples Rate This