ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ
ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ
कि दश्त ही की तरफ़ खिड़कियाँ निकाली जाएँ
बहार गुज़री क़फ़स ही में हाव-हू करते
ख़िज़ाओं में तो मिरी बेड़ियाँ निकाली जाएँ
ये शाम काफ़ी नहीं है सियह-लिबासी को
शफ़क़ से और ज़रा सुर्ख़ियाँ निकाली जाएँ
तो बच रहेंगी बरहना बदन की सौग़ातें
मोहब्बतों से अगर दूरियाँ निकाली जाएँ
मिरे जलाए दियों का भी कुछ ख़याल रहे
जो इस मकाँ से कभी खिड़कियाँ निकाली जाएँ
ये कैसी ज़िद है कि पहले बदन से जाँ निकले
फिर उस के बा'द सभी सिसकियाँ निकाली जाएँ
तो तुम भी मेरी तरह लड़खड़ाने लग जाओ
अगर तुम्हारी भी बैसाखियाँ निकाली जाएँ
ये ख़ूँ-बहा भी अदा कर चुकी है ख़्वाबों का
तो मेरी आँख से अब किर्चियाँ निकाली जाएँ
निकल पड़ेगा मिरा सर भी साथ ही 'सादिक़'
जो मेरे सर से कभी पगड़ियाँ निकाली जाएँ
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