बुझीं शमएँ तो दिल जलाए हैं
यूँ अंधेरों में रौशनी की है
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यूँ गुज़रता है तिरी याद की वादी में ख़याल
तुझे पसंद जो दिल की लगन नहीं आई
न जाने हार है या जीत क्या है
मैं समझता हूँ मुझे दौलत-ए-कौनैन मिली
वादी-ए-शब में उजालों का गुज़र हो कैसे
क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए
तेरा ही हो के जो रह जाऊँ तो फिर क्या होगा
डर डर के जिसे मैं सुन रहा हूँ
अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक
गया था बज़्म-ए-मोहब्बत में ख़ाली जाम लिए
गुलशन-ए-दिल में मिले अक़्ल के सहरा में मिले