एजाज़ गुल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का एजाज़ गुल

एजाज़ गुल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का एजाज़ गुल
नामएजाज़ गुल
अंग्रेज़ी नामEjaz Gul

उठा रखी है किसी ने कमान सूरज की

सुस्त-रौ मुसाफ़िर की क़िस्मतों पे क्या रोना

क़िस्मत की ख़राबी है कि जाता हूँ ग़लत सम्त

पाया न कुछ ख़ला के सिवा अक्स-ए-हैरती

नतीजा एक सा निकला दिमाग़ और दिल का

नहीं खुलता कि आख़िर ये तिलिस्माती तमाशा सा

मश्क़-ए-सुख़न में दिल भी हमेशा से है शरीक

मैं उम्र को तो मुझे उम्र खींचती है उलट

कुछ देर ठहर और ज़रा देख तमाशा

कोई सबब तो है ऐसा कि एक उम्र से हैं

कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच

जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है

हुआ के खेल में शिरकत के वास्ते मुझ को

होता है फिर वो और किसी याद के सुपुर्द

हो नहीं पाया है समझौता कभी दोनों के बीच

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई था अगर

हैरत है सब तलाश पे उस की रहे मुसिर

दिनों महीनों आँखें रोईं नई रुतों की ख़्वाहिश में

धूप जवानी का याराना अपनी जगह

दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर

चाहा था मफ़र दिल ने मगर ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर

बुझी नहीं मिरे आतिश-कदे की आग अभी

बे-सबब जम'अ तो करता नहीं तीर ओ तरकश

अतवार उस के देख के आता नहीं यक़ीं

अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया

निशान-ए-ज़िंदगी

दुश्मनों के दरमियान सुल्ह

ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है

ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के

यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं

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