तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है
तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है
हवा थमी हुई है और रहगुज़र ख़मोश है
हैं अपनी अपनी जा पे दोनों मुज़्तरिब कि क्या करें
तिरी निगह में शोर है मिरी नज़र ख़मोश है
तिरी सदाएँ आ नहीं रही हैं इस सुकूत में
कि होंट हिल रहे हैं तेरे तू मगर ख़मोश है
पुकारता हूँ अपने-आप को कि मर न जाऊँ मैं
मगर पुकार पर मिरी तरह नगर ख़मोश है
कोई तो गुंग रह गया किसी को साँप डस गया
कि बाम चुप है दर खुला पड़ा है घर ख़मोश है
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