हम लोग

दिल के ऐवाँ में लिए गुल-शुदा शम्ओं की क़तार

नूर-ए-ख़ुर्शीद से सहमे हुए उकताए हुए

हुस्न-ए-महबूब के सय्याल तसव्वुर की तरह

अपनी तारीकी को भेंचे हुए लिपटाए हुए

ग़ायत-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ सूरत-ए-आगाज़-ओ-मआल

वही बे-सूद-ए-तजस्सुस वही बेकार सवाल

मुज़्महिल साअत-ए-इमरोज़ की बे-रंगी से

याद-ए-माज़ी से ग़मीं दहशत-ए-फ़र्दा से निढाल

तिश्ना अफ़्कार जो तस्कीन नहीं पाते हैं

सोख़्ता अश्क जो आँखों में नहीं आते हैं

इक कड़ा दर्द कि जो गीत में ढलता ही नहीं

दिल के तारीक शिगाफ़ों से निकलता ही नहीं

और उलझी हुई मौहूम सी दरबाँ की तलाश

दश्त ओ ज़िंदाँ की हवस चाक-ए-गिरेबाँ की तलाश

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