सफ़र नामा

1

पेकिंग

यूँ गुमाँ होता है बाज़ू हैं मिरे साथ करोड़

और आफ़ाक़ की हद तक मिरे तन की हद है

दिल मिरा कोह ओ दमन दश्त ओ चमन की हद है

मेरे कीसे में है रातों का सियह-फ़ाम जलाल

मेरे हाथों में है सुब्हों की एनान-ए-गुलगूँ

मेरी आग़ोश में पलती है ख़ुदाई सारी

मेरे मक़्दूर में है मोजिज़ा-ए-कुन-फ़यकूं

2

सिंकियांग

अब कोई तब्ल बजेगा न कोई शाह-सवार

सुब्ह-दम मौत की वादी को रवाना होगा!

अब कोई जंग न होगी न कभी रात गए

ख़ून की आग को अश्कों से बुझाना होगा

कोई दिल धड़केगा शब भर न किसी आँगन में

वहम मनहूस परिंदे की तरह आएगा

सहम खूँ-ख़्वार दरिंदे की तरह आएगा

अब कोई जंग न होगी मय-ओ-साग़र लाओ

ख़ूँ लुटाना न कभी अश्क बहाना न होगा

साक़िया! रक़्स कोई रक़्स-ए-सबा की सूरत

मुतरिबा! कोई ग़ज़ल रंग-ए-हिना की सूरत

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