आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे
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ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-महफ़िल ठहर जाए
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं
क़ैद-ए-तन्हाई
सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
ज़िंदाँ ज़िंदाँ शोर-ए-अनल-हक़ महफ़िल महफ़िल क़ुल-क़ुल-ए-मय
सुरुद-ए-शबाना
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
दर-ए-उमीद के दरयूज़ा-गर
कुछ दिन से इंतिज़ार-ए-सवाल-ए-दिगर में है
न आज लुत्फ़ कर इतना कि कल गुज़र न सके
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी