गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो
गुल खिले जाते हैं वो साया-ए-तर तो देखो
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1933) Peoples Rate This
न अब रक़ीब न नासेह न ग़म-गुसार कोई
आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
एक नग़्मा करबला-ए-बैरुत के लिए
तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है
दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
ये फ़स्ल उमीदों की हमदम
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
तीन आवाज़ें
न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
मेजर-इसहाक़ की याद में
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम