कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
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हसरत-ए-दीद में गुज़राँ हैं ज़माने कब से
मुलाक़ात
फिर आईना-ए-आलम शायद कि निखर जाए
तह-ए-नुजूम
एक मंज़र
गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
रंग है दिल का मिरे
तीन आवाज़ें
मेरे नदीम!