सारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे
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हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन
उन दिनों रस्म-ओ-रह-ए-शहर-ए-निगाराँ क्या है
हज़र करो मिरे तन से
लौह-ओ-क़लम
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
जाँ बेचने को आए तो बे-दाम बेच दी
एक मंज़र
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
एक नग़्मा करबला-ए-बैरुत के लिए