तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे
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शाह-राह
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
कुछ मोहतसिबों की ख़ल्वत में कुछ वाइ'ज़ के घर जाती है
रंग है दिल का मिरे
क़ैद-ए-तन्हाई
अगस्त1955
दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
लेनिन-ग्राड का गोरिस्तान
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
वो अहद-ए-ग़म की काहिश-हा-ए-बे-हासिल को क्या समझे