उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है
जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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फलस्तीनी बच्चे के लिए लोरी
मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारा-ए-शाम
वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया
शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई
चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की
दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा
किस हर्फ़ पे तू ने गोश-ए-लब ऐ जान-ए-जहाँ ग़म्माज़ किया
हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही
हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!