हम खस्ता-तनों से मुहतसिबो क्या माल-मनाल का पूछते हो
जो उम्र से हम ने भर-पाया सब सामने लाए देते हैं
दामन में है मुश्त-ए-ख़ाक-ए-जिगर साग़र में है ख़ून-ए-हसरत-ए-मय
लो हम ने दामन झाड़ दिया लो जाम उलटाए देते हैं
Anwar Masood
Allama Iqbal
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इधर न देखो
शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें
बुनियाद कुछ तो हो
करो कज जबीं पे सर-ए-कफ़न मिरे क़ातिलों को गुमाँ न हो
फिर आईना-ए-आलम शायद कि निखर जाए
हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही
दर्द आएगा दबे पाँव
रंग है दिल का मिरे
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
सुरुद-ए-शबाना
अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले