मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने
ज़बाँ पे मोहर लगी है तो क्या कि रख दी है
हर एक हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में ज़बाँ मैं ने
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(8371) Peoples Rate This
पाँव से लहू को धो डालो
शाएर लोग
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
यहाँ से शहर को देखो
जानता है कि वो न आएँगे
लहू का सुराग़
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जश्न का दिन
कुत्ते
मेरे नदीम!
तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है