न दीद है न सुख़न अब न हर्फ़ है न पयाम
कोई भी हीला-ए-तस्कीं नहीं और आस बहुत है
उमीद-ए-यार नज़र का मिज़ाज दर्द का रंग
तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है
Wasi Shah
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जो पैरहन में कोई तार मोहतसिब से बचा
ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
सबा के हाथ में नर्मी है उन के हाथों की
ज़िंदगी
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं
क्या करें