रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीम
जैसे बीमार को बे-वज्ह क़रार आ जाए
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शोर-ए-बरबत-ओ-नय
गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक
पास रहो
सुरूद
इस वक़्त तो यूँ लगता है
सियासी लीडर के नाम
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
हज़र करो मिरे तन से
नज़्र-ए-मौलाना हसरत-मुहानी
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई