हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

आज तो ऐ दिल-ए-हज़ीं तू ने कमाल कर दिया

सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त

मेरे ख़ुलूस ने मिरा जीना मुहाल कर दिया

मय-कदे में है क़हत-ए-मय या कोई और बात है

पीर-ए-मुग़ाँ ने क्यूँ मुझे जाम सँभाल कर दिया

जितने चमन-परस्त थे साया-ए-गुल में मस्त थे

अपना उरूज-ए-गुलिस्ताँ नज़र-ए-ज़वाल कर दिया

ख़ुद मिरा सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ छेड़ सका न दिल का साज़

आप की इक निगाह ने साहब-ए-हाल कर दिया

बज़्म में सारे अहल-ए-होश उन के सितम पे थे ख़मोश

एक जुनूँ-परस्त ने उठ के सवाल कर दिया

लुत्फ़-ए-फ़िराक़-ए-यार ने लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार ने

दूर दिल ओ निगाह से शौक़-ए-विसाल कर दिया

सुन के बयान-ए-मय-कदा देख के शान-ए-मय-कदा

शैख़-ए-हरम ने भी 'फ़ना' मय को हलाल कर दिया

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