आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत
अहबाब से ग़म-ख़्वार हुआ भी नहीं जाता
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करम-ए-बे-हिसाब चाहा था
रह जाए या बला से ये जान रह न जाए
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गई
ना-मेहरबानियों का गिला तुम से क्या करें
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैं