हर रोज़ दिखाई दें सब लोग वहीं लेकिन
जब ढूँडने निकलें तो मिलता ही नहीं कोई
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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Friends Poetry
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यूँ मुसल्लत तो धुआँ जिस्म के अंदर तक है
थे उस के हाथ लहू में हमारे ग़र्क़ मगर
उसे समझा-बुझा के हम तो हारे
ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता
दिल की ये आग बुझा दी किस ने
अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर
हिजाब उस के मिरे बीच अगर नहीं कोई
मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें
रौशनी से किस तरह पर्दा करेंगे
ये और बात कि वो तिश्ना-ए-जवाब रहा