जोर्ज पेश शोर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का जोर्ज पेश शोर

जोर्ज पेश शोर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का जोर्ज पेश शोर
नामजोर्ज पेश शोर
अंग्रेज़ी नामGeorge Puech Shor

पीरी में ख़ाक ज़िंदगानी का मज़ा

क्या वस्फ़ लिखूँ ज़ुल्फ़-ए-सियह की लट का

कुछ तेरा समर न ऐ जवानी पाया

कुछ काम नहीं गबरू मुसलमाँ से हमें

का'बे में तो सिद्क़ और सफ़ा को पाया

जब तक है शबाब-ए-साज़गार-ए-दौलत

गिरजा में गए तो पारसाई देखी

दौलत ने मुआ'विनत जो की तो क्या की

ज़र्रे की तरह ख़ाक में पामाल हो गए

उस माह-रू पे आँख किसी की न पड़ सकी

तुम्हारे इश्क़ में क्या क्या न इख़्तियार किया

शौक़ ने की जो रहबरी दिल की

रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता

पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा

नहीं है टूटे की बूटी जहान में पैदा

जहाँ में ज़र का है कारख़ाना न कोई अपना न है यगाना

जब जवानी गई छुड़ा कर हाथ

जान पर अपनी हाए क्यूँ बनती

इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ

हवा के घोड़े पे रहता है वो सवार मुदाम

है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे

गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब की साल नहीं

इक नज़र ने किया है काम तमाम

इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ

दूर हम से हैं वो तो क्या डर है

दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं

देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर

अदम से हस्ती में जब हम आए न कोई हमदर्द साथ लाए

ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है

रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता

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