Ghazal Poetry

हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ऐसा नहीं कि मुँह में हमारे ज़बाँ नहीं

फ़र्रुख़ जाफ़री

उसे समझा-बुझा के हम तो हारे

फ़र्रुख़ जाफ़री

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

अल्का मिश्रा

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़मीन मेरी रहेगी न आइना मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अब शहर में कहाँ रहे वो बा-वक़ार लोग

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

तेज़ है मेरा क़लम तलवार से

एज़ाज़ काज़मी

जो पहले ज़रा सी नवाज़िश करे है

फ़ारूक़ रहमान

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

फ़हमीदा रियाज़

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

नहीं कि ज़िंदा है बस एक मेरी ज़ात में इश्क़

एज़ाज़ काज़मी

तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है

एज़ाज़ काज़मी

बहुत ख़ूब नक़्शा मिरे घर का है

फ़ारूक़ इंजीनियर

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

सहमा है आसमान ज़मीं भी उदास है

दाऊद मोहसिन

मैं लौह-ए-अर्ज़ पर नाज़िल हुआ सहीफ़ा हूँ

अली अकबर अब्बास

कुछ ऐसे वस्ल की रातें गुज़ारी है मैं ने

अमित सतपाल तनवर

बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता

आमिर अमीर

कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

न सारे ऐब हैं ऐब और हुनर हुनर भी नहीं

फ़रहत अली ख़ान

ज़ुहर-ए-आशिक़ी से डरता हूँ

दाऊद मोहसिन

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

मोहब्बतों में मुझे तो उदास रहने दे

फ़रह शाहिद

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