इश्क़ पर इख़्तियार है किस का
फ़ाएदा पेश-ओ-पस में कुछ भी नहीं
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मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है
ढूँड लाया हूँ ख़ुशी की छाँव जिस के वास्ते
अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे
उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी
नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए
आइने में अक्स खिलता है गुल-ए-हैरत नहीं
ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है
रास आती ही नहीं जब प्यार की शिद्दत मुझे
इस अँधेरे में चराग़-ए-ख़्वाब की ख़्वाहिश नहीं