ग़ुलाम मौला क़लक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम मौला क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम मौला क़लक़
नामग़ुलाम मौला क़लक़
अंग्रेज़ी नामGhulam Maula Qalaq

ज़ुहहाद का ग़फ़लत से है औराद-ओ-सुजूद

ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच

ये वहम-ए-दुई दिल से जुदा करना था

ये शहर बुलंद आलम-ए-बाला से था

या-रब तुझे फ़िक्र-पा-ए-बंदी क्या है

याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला

याँ हम को दिया क्या जो वहाँ पर हो निगाह

वो वक़्त-ए-शबाब वो ज़माना न रहा

उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बाला में नहीं

था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार

ता-माह-ए-सियाम हुए बाब-ए-उम्मीद

शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने

सद-हैफ़ कि मय-नोश हुए हम कैसे

नासेह की शिकायत वही ज़ख़्म-ए-जाँ है

नाहक़ था 'क़लक़' मुझे ग़ुरूर-ए-इस्लाम

मुँह गेसू-ए-पुर-ख़म से न मोड़ूँ कब तक

मेहराब-ओ-मुसल्ला और ज़ाहिद भी वही

मस्जिद में न जा वाँ नहीं होने का निबाह

मस्जिद को दिया छोड़ रिया की ख़ातिर

मरमर के पए रंज-ओ-बला जीते हैं

लो जाइए बस ख़ुदा हमारा हाफ़िज़

लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ

क्या ज़िक्र-ए-वफ़ा जफ़ा किसी से न बनी

क्या लेने सू-ए-जाह-ओ-हशम जाएँगे

क्या जानिए उल्फ़त का है किस से आग़ाज़

किस वास्ते दी थीं हमें या-रब आँखें

किस तरह से गिर्या को न हो तुग़्यानी

किस तरह कहूँ आ भी कहीं उज़्र न कर

ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है

ख़ुद रफ़्ता हो बदमस्त हो कैसा है मिज़ाज

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