ये वहम-ए-दुई दिल से जुदा करना था
इस क़तरे को दरिया में फ़ना करना था
अल्लाह रे रक़ाबत कि रक़ाबत सब से
ऐ जोश-ए-ख़ुदी ख़ौफ़-ए-ख़ुदा करना था
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दुनिया है अजब बू-क़लमूँ ज़िद-आमोज़
आए क्या तेरा तसव्वुर ध्यान में
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
या-रब तुझे फ़िक्र-पा-ए-बंदी क्या है
बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में
तेरा दीवाना तो वहशत की भी हद से निकला
था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही
किस वास्ते दी थीं हमें या-रब आँखें