मेरी कश्ती को डुबो कर चैन से बैठे न तू
ऐ मिरे दरिया! हमेशा तुझ में तुग़्यानी रहे
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जैसे कोई काट रहा है जाल मिरा
यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर
मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया
फ़राख़-दस्त का ये हुस्न-ए-तंग-दस्ती है
ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले
मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा
बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और
मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी
ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
ज़बान अपनी बदलने पे कोई राज़ी नहीं
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला