Ghazals of Gulzar

Ghazals of Gulzar
नामगुलज़ार
अंग्रेज़ी नामGulzar
जन्म की तारीख1936
जन्म स्थानMumbai

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का

ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की

शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आज साँस भारी है

सहमा सहमा डरा सा रहता है

सब्र हर बार इख़्तियार किया

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले

फूलों की तरह लब खोल कभी

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

कोई अटका हुआ है पल शायद

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं

काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी

कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे

जब भी ये दिल उदास होता है

जब भी आँखों में अश्क भर आए

हम तो कितनों को मह-जबीं कहते

हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से

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