हबीब मूसवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हबीब मूसवी

हबीब मूसवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हबीब मूसवी
नामहबीब मूसवी
अंग्रेज़ी नामHabeeb Musvi

ज़बाँ पर तिरा नाम जब आ गया

यूँ आती हैं अब मेरे तनफ़्फ़ुस की सदाएँ

ये साबित है कि मुतलक़ का तअय्युन हो नहीं सकता

तीरा-बख़्ती की बला से यूँ निकलना चाहिए

थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या

तेज़ी-ए-बादा कुजा तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार कुजा

तेरा कूचा है वो ऐ बुत कि हज़ारों ज़ाहिद

तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान

शम्अ का शाना-ए-इक़बाल है तौफ़ीक़-ए-करम

शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में

रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़

क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ

पिला साक़ी मय-ए-गुल-रंग फिर काली घटा आई

नासेह ये वा'ज़-ओ-पंद है बेकार जाएगा

मोहतसिब तू ने किया गर जाम-ए-सहबा पाश पाश

मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है

मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं

लिख कर मुक़त्तआ'त में दीं उन को अर्ज़ियाँ

लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से

क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा

किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश

ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े

कसी हैं भब्तियाँ मस्जिद में रीश-ए-वाइज़ पर

करो बातें हटाओ आइना बस बन चुके गेसू

जो ले लेते हो यूँ हर एक का दिल बातों बातों में

जब कि वहदत है बाइस-ए-कसरत

जा सके न मस्जिद तक जम्अ' थे बहुत ज़ाहिद

हज़रत-ए-वाइज़ न ऐसा वक़्त हाथ आएगा फिर

गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट

ग़ुर्बत बस अब तरीक़-ए-मोहब्बत को क़त्अ कर

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