हबीब जालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हबीब जालिब (page 5)
नाम | हबीब जालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Habib Jalib |
जन्म की तारीख | 1929 |
मौत की तिथि | 1993 |
जन्म स्थान | Lahore |
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं
हम ने दिल से तुझे सदा माना
हम आवारा गाँव गाँव बस्ती बस्ती फिरने वाले
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में
गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है
ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या
ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या
घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी
'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा
'फ़ैज़' और 'फ़ैज़' का ग़म भूलने वाला है कहीं
इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या
दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं
दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को
दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले
चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे
बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी
बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच
बातें तो कुछ ऐसी हैं कि ख़ुद से भी न की जाएँ
और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
और सब भूल गए हर्फ़ सदाक़त लिखना
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ
आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह