दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले

दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले

ये किस नगर को रवाना हुए हैं घर वाले

कहानियाँ जो सुनाते थे अहद-ए-रफ़्ता की

निशाँ वो गर्दिश-ए-अय्याम ने मिटा डाले

मैं शहर शहर फिरा हूँ इसी तमन्ना में

किसी को अपना कहूँ कोई मुझ को अपना ले

सदा न दे किसी महताब को अंधेरों में

लगा न दे ये ज़माना ज़बान पर ताले

कोई किरन है यहाँ तो कोई किरन है वहाँ

दिल ओ निगाह ने किस दर्जा रोग हैं पाले

हमीं पे उन की नज़र है हमीं पे उन का करम

ये और बात यहाँ और भी हैं दिल वाले

कुछ और तुझ पे खुलेंगी हक़ीक़तें 'जालिब'

जो हो सके तो किसी का फ़रेब भी खा ले

(1600) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

DaraKHt Sukh Gae Ruk Gae Nadi Nale In Hindi By Famous Poet Habib Jalib. DaraKHt Sukh Gae Ruk Gae Nadi Nale is written by Habib Jalib. Complete Poem DaraKHt Sukh Gae Ruk Gae Nadi Nale in Hindi by Habib Jalib. Download free DaraKHt Sukh Gae Ruk Gae Nadi Nale Poem for Youth in PDF. DaraKHt Sukh Gae Ruk Gae Nadi Nale is a Poem on Inspiration for young students. Share DaraKHt Sukh Gae Ruk Gae Nadi Nale with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.