ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम
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मुद्दतें हो गईं ख़ता करते
शे'र होता है अब महीनों में
सच ही लिखते जाना
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
नीलो
तेज़ चलो
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
दास्तान-ए-दिल-ए-दो-नीम
फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल
यौम-ए-मई