दयार-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल से निकल कर
दिल ओ जाँ नज़्र-ए-सहरा हो गए हैं
कहाँ वो चाँद सी हँसती जबीनें
घनी तारीकियों में खो गए हैं
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नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं
14-अगस्त
तुझे पाया कि तुझ को खो दिया है
न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो
सो गए अंजुम-ए-शब याद न आ
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया
अश्क आँखों में अब हैं आए से
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
शेर से शाइरी से डरते हैं