दोस्तो मशवरे न दो हम को
मश्वरों से दिमाग़ जलता है
ये किसी ने ग़लत कहा तुम से
इन खिलौनों से जी बहलता है
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
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दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को
दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
तेरी बस्ती में जिधर से गुज़रे
कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए
जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
बगिया लहूलुहान
मुशीर
ज़ाबता
शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं
'लता'