ग़म के साँचे में ढल सको तो चलो
तुम मिरे साथ चल सको तो चलो
दूर तक तीरगी में चलना है
सूरत-ए-शम्अ जल सको तो चलो
Javed Akhtar
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शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ
ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए
इक उम्र सुनाएँ तो हिकायत न हो पूरी
तिरे माथे पे जब तक बल रहा है
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
'लता'
अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें